मध्य प्रदेश - कृषि में इतिहास और वर्तमान अवलोकन
सोयाबीन राज्य के नाम से प्रसिद्ध मध्य प्रदेश ने भारत सरकार द्वारा लगातार छः वर्षों तक कृषि के क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार "कृषि कर्मण" अर्जित किया है।
सोयाबीन, चना, उड़द, अरहर, मसूर, अलसी के उत्पादन में हमारा राज्य देश में प्रथम स्थान पर है| मक्का, तिल, रामतिल, मूंग के उत्पादन में द्वितीय तथा गेहूँ, ज्वार, जौ के उत्पादन में तृतीय स्थान पर है । रबी सीजन में गेहूं, चना, मटर, मसूर, सरसों, गन्ना और अलसी बहुतायत से बोई जाती है।
मध्य प्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 307.56 लाख हेक्टेयर है, जो देश के कुल क्षेत्रफल का 9.38 प्रतिशत है। राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र 307.56 लाख हेक्टेयर में से लगभग 151.91 लाख हेक्टेयर ही कृषि योग्य है। इसमें से वर्तमान में लगभग 145 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खरीफ की फसल तथा लगभग 119 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में रबी की फसलें उगाई जा रही हैं। राज्य का फसल घनत्व 165.70 प्रतिशत है। राज्य में कुल सिंचित क्षेत्र सरकारी और निजी स्रोतों से लगभग 110.97 लाख हेक्टेयर है।
जनसंख्या के मामले में मध्यप्रदेश देश में पांचवें स्थान पर है। मध्य प्रदेश में कृषि और कृषि व्यवसाय मुख्य रूप से राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। राज्य की 3/4 जनसंख्या, लगभग 72 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। इनमें से 35 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति (15.6 प्रतिशत) और अनुसूचित जनजाति (21.1 प्रतिशत) के अंतर्गत है, जिनके पास बहुत कम हिस्सेदारी है और वे विभिन्न कारणों से उचित कृषि उत्पादन लेने में असमर्थ हैं। इसे मिलाकर राज्य में 27.15 प्रतिशत छोटे किसान हैं जिनके पास 1 से 2 हेक्टेयर तक की हिस्सेदारी है और 48.3 प्रतिशत सीमांत किसान हैं जिनके पास अधिकतम 1 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध है।
राज्य की विविध जलवायु के आधार पर इसे 11 जलवायु क्षेत्रों और 5 फसल क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। सोयाबीन की फसल हमारे राज्य में खरीफ सीजन में सबसे अधिक बोई जाने वाली फसल है, जो वर्तमान में लगभग 62 लाख हेक्टेयर में बोई जा रही है। इसके अलावा खरीफ में हमारी प्रमुख फसलें सोयाबीन, धान, मक्का, अरहर, मूंग, उड़द, ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी, तिल, कपास आदि हैं। वहीं रबी में गेहूं, चना, मटर, मसूर, सरसों, गन्ना, अलसी जैसी प्रमुख फसलें होती हैं। इनमें गेहूँ का रकबा सबसे अधिक है। गेहूँ की उत्पादकता के लिए किए गए प्रयासों से इसके क्षेत्रफल, उत्पादन और उत्पादकता में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। इनके अलावा कपास और गन्ना की फसलें भी हमारी प्रमुख नकदी फसलें हैं।
राज्य में बोई जाने वाली लगभग सभी फसलों ने पिछले डेढ़ दशक में उत्पादन और उत्पादकता के क्षेत्र में उच्च कीर्तिमान स्थापित किया है।
किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग के मंत्री श्री कमल पटेल हैं। शासन स्तर पर कृषि उत्पादन आयुक्त श्री के.के. सिंह, प्रमुख सचिव श्री अजीत केसरी एवं निदेशक श्रीमती. प्रीति मैथिल. विभाग निदेशालय विंध्याचल भवन, भोपाल में स्थित है। संभागीय स्तर पर संयुक्त निदेशकों, जिला स्तर पर उपनिदेशकों, अनुमंडल स्तर पर सूद संभागीय कृषि अधिकारियों (एस.डी.ए.ओ.) तथा ब्लॉक स्तर पर वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारियों (एस.ए.डी.ओ.) के अधीन मैदानी अमले की नियुक्ति की जाती है।
इसके अतिरिक्त, कृषि अभियांत्रिकी निदेशालय (भोपाल), म.प्र. राज्य कृषि विपणन (मंडी) बोर्ड (भोपाल), म.प्र. राज्य बीज एवं कृषि विकास निगम (भोपाल), म.प्र. राज्य बीज प्रमाणन अभिकरण (भोपाल), म.प्र. राज्य जैविक प्रमाणन एजेंसी (भोपाल), जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (JNKVV, जबलपुर) और राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय (RVSKVV, ग्वालियर) और राज्य कृषि विस्तार और प्रशिक्षण संस्थान, (SIAET, बरखेड़ीकलां, भोपाल) संबद्ध विभाग हैं। जिसे विभाग इनपुट और आपूर्ति, प्रशिक्षण, मशीनीकरण और विस्तार संबंधी कार्यक्रमों को क्रियान्वित करता है।
विभाग की विभिन्न इकाइयों का उत्तरदायित्व राज्य में कृषि फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि, भूमि एवं जल प्रबंधन, लघु सिंचाई कार्यक्रम का विस्तार तथा विकसित कृषि तकनीकों को खेतों तक पहुँचाकर किसानों की आय में वृद्धि करना है।
किसानों की आय बढ़ाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरत कृषि की लागत कम करने और उत्पादन बढ़ाने की है। इसके लिए अपनाई जा रही प्रमुख प्रथाओं और कार्यों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
1. मेडागास्कर तकनीक अपनाकर धान उत्पादन में वृद्धि।
2. मृदा परीक्षण द्वारा उर्वरक दर का निर्धारण।
3. प्रत्येक वर्ष 10% कृषि क्षेत्र में उन्नत किस्म के प्रमाणित बीज बोकर अगले वर्ष के लिए पूर्ण आवश्यकता के बीज का उत्पादन करना।
4. बीजोपचार एवं जैविक खाद से तैयार बीज बोना।
5. धान में "श्री" विधि, सोयाबीन में "रिज एंड फारो" या "राइज़्ड बेड" विधि, तूर में "धारवाड़ विधि" के साथ-साथ अंतर-फसल प्रणाली का पालन करना